Raater Alo

Popular Sanskrit Shlokas For Students 2024 l छात्रों के लिए लोकप्रिय संस्कृत श्लोक

Popular Sanskrit Shlokas For Students 2024 l छात्रों के लिए लोकप्रिय संस्कृत श्लोक

छात्र जीवन को सही दिशा में प्रेरित करने और नैतिक मूल्यों को सुदृढ़ करने में संस्कृत श्लोकों का महत्वपूर्ण योगदान है। ये श्लोक न केवल शैक्षिक विकास में सहायक होते हैं, बल्कि जीवन की गहन शिक्षा भी प्रदान करते हैं। चाहे वह अनुशासन हो, ध्यान केंद्रित करना हो या आत्मविश्वास बढ़ाना, संस्कृत श्लोक छात्रों को सही मार्गदर्शन देने का एक उत्कृष्ट साधन हैं। इस ब्लॉग में हम छात्रों के लिए लोकप्रिय संस्कृत श्लोक (Popular Sanskrit Shlokas For Students) लेकर आए हैं, जो न केवल प्रेरणा का स्रोत हैं, बल्कि आपके व्यक्तित्व और विचारों को भी सशक्त करेंगे।

आज के प्रतिस्पर्धात्मक युग में, छात्रों के लिए संस्कृत श्लोकों का महत्व और भी बढ़ गया है। ये संस्कृत श्लोक छात्रों के लिए न केवल शिक्षा में सहायक होते हैं, बल्कि वे नैतिकता और संस्कृति का भी परिचय देते हैं। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं लोकप्रिय संस्कृत श्लोक, जो न केवल ज्ञानवर्धक हैं, बल्कि छात्रों के लिए प्रेरणादायक श्लोक भी हैं।

इन संस्कृत शिक्षाप्रद श्लोकों के माध्यम से विद्यार्थी जीवन के मूलभूत नैतिक मूल्यों को सीख सकते हैं। प्रत्येक श्लोक का एक गहरा अर्थ होता है, जिसे समझने के लिए संस्कृत श्लोक और उनके अर्थ का ज्ञान आवश्यक है। हम एक संस्कृत श्लोकों की सूची साझा कर रहे हैं, जिसमें ऐसे अनमोल संस्कृत श्लोक शामिल हैं, जो जीवन में मार्गदर्शन देने में सक्षम हैं।

ये संस्कृत के प्रेरणादायक श्लोक छात्रों को उनके लक्ष्यों की ओर अग्रसरित करने का कार्य करते हैं। इन श्लोकों का प्रभाव केवल शैक्षणिक क्षेत्र में नहीं, बल्कि व्यक्तिगत विकास में भी देखा जा सकता है। आइए, हम इन संस्कृत श्लोकों का संग्रह देखें और उनके संदेशों को अपने जीवन में अपनाएं, ताकि हम एक समर्पित और नैतिक जीवन जी सकें।

आइए, इन श्लोकों के माध्यम से शिक्षा, संस्कार और प्रेरणा का अनमोल खजाना खोजें!

Popular Sanskrit Shlokas For Students 2024 l छात्रों के लिए लोकप्रिय संस्कृत श्लोक

सुखार्थिनः कुतोविद्या नास्ति विद्यार्थिनः सुखम् ।              

सुखार्थी वा त्यजेद् विद्यां विद्यार्थी वा त्यजेत् सुखम् ॥

 भावार्थ :

जिसे सुख की अभिलाषा हो (कष्ट उठाना न हो) उसे विद्या कहाँ से ? और विद्यार्थी को सुख कहाँ से ? सुख की ईच्छा रखनेवाले को विद्या की आशा छोडनी चाहिए, और विद्यार्थी को सुख की ।

न चोरहार्यं न च राजहार्यंन भ्रातृभाज्यं न च भारकारी ।        

  व्यये कृते वर्धते एव नित्यं विद्याधनं सर्वधन प्रधानम् ॥

 भावार्थ :

विद्यारुपी धन को कोई चुरा नहीं सकता, राजा ले नहीं सकता, भाईयों में उसका भाग नहीं होता, उसका भार नहीं लगता, (और) खर्च करने से बढता है । सचमुच, विद्यारुप धन सर्वश्रेष्ठ है ।

नास्ति विद्यासमो बन्धुर्नास्ति विद्यासमः सुहृत् ।          

        नास्ति विद्यासमं वित्तं नास्ति विद्यासमं सुखम् ॥

 भावार्थ :

विद्या जैसा बंधु नहीं, विद्या जैसा मित्र नहीं, (और) विद्या जैसा अन्य कोई धन या सुख नहीं ।

ज्ञातिभि र्वण्टयते नैव चोरेणापि न नीयते ।.        

                  दाने नैव क्षयं याति विद्यारत्नं महाधनम् ॥

 भावार्थ :

यह विद्यारुपी रत्न महान धन है, जिसका वितरण ज्ञातिजनों द्वारा हो नहीं सकता, जिसे चोर ले जा नहीं सकते, और जिसका दान करने से क्षय नहीं होता ।

सर्वद्रव्येषु विद्यैव द्रव्यमाहुरनुत्तमम् ।

अहार्यत्वादनर्ध्यत्वादक्षयत्वाच्च सर्वदा ॥

 भावार्थ :

सब द्रव्यों में विद्यारुपी द्रव्य सर्वोत्तम है, क्यों कि वह किसी से हरा नहीं जा सकता; उसका मूल्य नहीं हो सकता, और उसका कभी नाश नहीं होता ।

विद्या नाम नरस्य रूपमधिकं प्रच्छन्नगुप्तं धनम् विद्या भोगकरी यशः सुखकरी विद्या गुरूणां गुरुः ।  
विद्या बन्धुजनो विदेशगमने विद्या परं दैवतम् विद्या राजसु पूज्यते न हि धनं विद्याविहीनः पशुः ॥

 भावार्थ :

विद्या इन्सान का विशिष्ट रुप है, गुप्त धन है । वह भोग देनेवाली, यशदात्री, और सुखकारक है । विद्या गुरुओं का गुरु है, विदेश में वह इन्सान की बंधु है । विद्या बडी देवता है; राजाओं में विद्या की पूजा होती है, धन की नहीं । इसलिए विद्याविहीन पशु  ही है ।

अलसस्य कुतो विद्या अविद्यस्य कुतो धनम् ।                  

अधनस्य कुतो मित्रममित्रस्य कुतः सुखम् ॥

 भावार्थ :

आलसी इन्सान को विद्या कहाँ ? विद्याविहीन को धन कहाँ ? धनविहीन को मित्र कहाँ ? और मित्रविहीन को सुख कहाँ ?

रूपयौवनसंपन्ना विशाल कुलसम्भवाः ।                        

विद्याहीना न शोभन्ते निर्गन्धा इव किंशुकाः ॥

 भावार्थ :

रुपसंपन्न, यौवनसंपन्न, और चाहे विशाल कुल में पैदा क्यों न हुए हों, पर जो विद्याहीन हों, तो वे सुगंधरहित केसुडे के फूल की भाँति शोभा नहीं देते ।

विद्याभ्यास स्तपो ज्ञानमिन्द्रियाणां च संयमः ।            

अहिंसा गुरुसेवा च निःश्रेयसकरं परम् ॥

 भावार्थ :

विद्याभ्यास, तप, ज्ञान, इंद्रिय-संयम, अहिंसा और गुरुसेवा – ये परम् कल्याणकारक हैं ।

विद्या ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम्।      

पात्रत्वाद्धनमाप्नोति धनाद्धर्मं ततः सुखम्॥

 भावार्थ :

विद्या से विनय (नम्रता) आती है, विनय से पात्रता (सजनता) आती है पात्रता से धन की प्राप्ति होती है, धन से धर्म और धर्म से सुख की प्राप्ति होती है ।

दानानां च समस्तानां चत्वार्येतानि भूतले ।                      

 श्रेष्ठानि कन्यागोभूमिविद्या दानानि सर्वदा ॥

 भावार्थ :

सब दानों में कन्यादान, गोदान,भूमिदान,और विद्यादान सर्वश्रेष्ठ है ।

क्षणशः कणशश्चैव विद्यामर्थं च साधयेत् ।                            

क्षणे नष्टे कुतो विद्या कणे नष्टे कुतो धनम् ॥

 भावार्थ :

एक एक क्षण गवाये बिना विद्या पानी चाहिए; और एक एक कण बचा करके धन ईकट्ठा करना चाहिए । क्षण गवानेवाले को विद्या कहाँ, और कण को क्षुद्र समजनेवाले को धन कहाँ ?

विद्या नाम नरस्य कीर्तिरतुला भाग्यक्षये चाश्रयो धेनुः कामदुधा रतिश्च विरहे नेत्रं तृतीयं च सा । 
सत्कारायतनं कुलस्य महिमा रत्नैर्विना भूषणम् तस्मादन्यमुपेक्ष्य सर्वविषयं विद्याधिकारं कुरु ॥

 भावार्थ :

विद्या अनुपम कीर्ति है; भाग्य का नाश होने पर वह आश्रय देती है, कामधेनु है, विरह में रति समान है, तीसरा नेत्र है, सत्कार का मंदिर है, कुल-महिमा है, बगैर रत्न का आभूषण है; इस लिए अन्य सब विषयों को छोडकर विद्या का अधिकारी बन ।

Exit mobile version