गुलज़ार, एक ऐसा नाम जिसे सुनते ही दिल की गहराइयों में हलचल होने लगती है। उनकी कविताओं और गीतों में वो जादू है, जो शब्दों को जीवंत बना देता है और हर सुनने वाले को अपनी भावनाओं के साथ जोड़ लेता है। चाहे प्यार की मिठास हो, वियोग का दर्द हो, या जीवन की कड़वी सच्चाइयाँ—गुलज़ार साहब ने हर पहलू को इतने खूबसूरत तरीके से उकेरा है कि उनकी पंक्तियाँ सीधे दिल को छू जाती हैं। इस ब्लॉग में हम आपको गुलज़ार की 10 ऐसी दिल छू लेने वाली पंक्तियों से रूबरू कराएंगे, जो आपकी आत्मा को गहराई से स्पर्श करेंगी और आपको एक भावनात्मक यात्रा पर ले जाएंगी।
आप के बाद हर घड़ी हम ने आप के साथ ही गुज़ारी है : गुलज़ार
शाम से आज सांस भारी है
बे-क़रारी सी बे-क़रारी है
आप के बाद हर घड़ी हम ने
आप के साथ ही गुज़ारी है
रात को दे दो चांदनी की रिदा
दिन की चादर अभी उतारी है
शाख़ पर कोई क़हक़हा तो खिले
कैसी चुप सी चमन में तारी है
कल का हर वाक़िआ तुम्हारा था
आज की दास्तां हमारी है
हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते : गुलज़ार
हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
वक़्त की शाख़ से लम्हें नहीं तोड़ा करते
जिस की आवाज़ में सिलवट हो निगाहों में शिकन
ऐसी तस्वीर के टुकड़े नहीं जोड़ा करते
शहद जीने का मिला करता है थोड़ा थोड़ा
जाने वालों के लिये दिल नहीं थोड़ा करते
लग के साहिल से जो बहता है उसे बहने दो
ऐसी दरिया का कभी रुख़ नहीं मोड़ा करते
शाम से आँख में नमी सी है, आज फिर आपकी कमी सी है : गुलज़ार
शाम से आँख में नमी सी है
शाम से आँख में नमी सी है
आज फिर आपकी कमी सी है
शाम से आँख में नमी सी है
दफ़्न कर दो हमें के साँस मिले
दफ़्न कर दो हमें के साँस मिले
नब्ज़ कुछ देर से थमी सी है
नब्ज़ कुछ देर से थमी सी है
आज फिर आपकी कमी सी है
वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर
वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर
इसकी आदत भी आदमी सी है
इसकी आदत भी आदमी सी है
आज फिर आपकी कमी सी है
कोई रिश्ता नहीं रहा फिर भी
कोई रिश्ता नहीं रहा फिर भी
एक तसलीम लाज़मी सी है
एक तसलीम लाज़मी सी है
शाम से आँख में नमी सी है
आज फिर आपकी कमी सी है
जागना भी कबूल हैं तेरी यादों में रात भर, तेरे एहसासों में जो सुकून है वो नींद में कहाँ : गुलज़ार
जागना भी कबूल हैं तेरी यादों में रात भर, तेरे एहसासों में जो सुकून है वो नींद में कहाँ|
हम भूल गए हैं रख के कहीं : गुलज़ार
हम भूल गए हैं रख के कहीं
वो चीज़ जिसे दिल कहते थे
वो चीज़ जिसे दिल कहते हैं
हम भूल गए हैं…
उम्मीद भी अजनबी लगती है
और दर्द पराया लगता है
आईने में जिसको देखा था
बिछड़ा हुआ साया लगता है
हम भूल गए हैं…
ना जाने कहाँ छोड़ आये हैं
वो शख्स जिसे हम जानते थे
आहट भी सुनाई देती नहीं
परछाई से हम पहचानते थे
हम भूल गए हैं…
ताकीये चादर महके रहते हैं : गुलज़ार
ताकीये चादर महके रहते हैं
जो तुम गई तुम्हारी खुशबू
सूंघा करेंगे हम
जुल्फ में फंसी हुई खोल देंगे बालियां
कान खिंच जाए आगर
खा लें मीठी गालियाँ
चुनते चलें जोड़ों के निशान
के उन पार और ना पाँव पड़े
मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है : गुलज़ार
मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है
मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है
वो सावन के कुछ भीगे भीगे दिन रखे हैं
वो और मेरे इक ख़त मैं लिपटी रात पड़ी है
वो रात भुला दो, मेरा वो सामान लौटा दो
वो रात भुला दो, मेरा वो सामान लौटा दो
मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है
वो सावन के कुछ भीगे भीगे दिन रखे हैं
वो और मेरे इक ख़त मैं लिपटी रात पड़ी है
वो रात भुला दो, मेरा वो सामान लौटा दो
पतझड़ है कुछ, है ना?
वो पतझड़ मैं कुछ पत्तों के गिरने की आहट
कानों मैं एक बार पहन के लौट आयी थी
पतझड़ की वो शाख अभी तक काँप रही है
वो शाख गिरा दो, मेरा वो सामान लौटा दो
वो शाख गिरा दो, मेरा वो सामान लौटा दो
एक अकेली छतरी मैं जब आधे आधे भीग रहे थे
एक अकेली छतरी मैं जब आधे आधे भीग रहे थे
आधे सूखे आधे गीले, सुखा तो मैं ले आयी थी
गीला मन शायद बिस्तर के पास पड़ा हो
वो भिजवा दो, मेरा वो सामान लौटा दो
एक सो सोला चाँद की रातें
एक तुम्हारे काँधे का तिल
एक सो सोला चाँद की रातें
एक तुम्हारे काँधे का तिल
गीली महेंदी की खुशबु झूठ मूठ के शिकवे कुछ
झूठ मूठ के वादे सब याद करा दो
सब भिजवा दो, मेरा वो सामान लौटा दो
सब भिजवा दो, मेरा वो सामान लौटा दो
एक इजाज़त दे दो बस
जब इसको दफ़नाउन्गी
मैं भी वहीं सो जाउंगी
मैं भी वहीं सो जाउंगी